अटलजी नहीं रहे। वह मेरी आंखों के सामने हैं। बिल्कुल स्थिर। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से मुझे बाहों में भर लेते थे, वे स्थिर हैं। अटलजी की यह स्थिरता मुझे झकझोर रही है। अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में। कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है लेकिन कह नहीं पा रहा। मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटलजी अब नहीं हैं, लेकिन यह विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं।
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